jakir husain: tabla to grammy

तबला बजाने की कला के उस्ताद जाकिर हुसैन के लयबद्ध क्षेत्र में आपका स्वागत है। एक तबला वादक के रूप में, jakir husain ने इस पारंपरिक भारतीय वाद्य यंत्र पर अपने अद्वितीय कौशल और महारत से दुनिया भर के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। इस article में, हम जाकिर हुसैन के जीवन, करियर और कलात्मकता के बारे में विस्तार से जानेंगे

jakir husain

Table of Contents

शुरूआती जीवन

तबला वादक jakir husain का जन्म: 9 मार्च 1951, मुंबई, भारत में हुआ था इनके पिता का नाम उस्ताद अल्ला रक्खा (प्रसिद्ध तबला वादक) है |शुरुआती शिक्षा सेंट मैकल्स हाईस्कूल,से प्राप्त की और माहीम, मुंबई सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई से अपनी कॉलेज की शिक्षा प्राप्त की |

jakir husain family:

पत्नी 

एंटोनिया मिन्नेकोला (विवाह 1978)

बच्चे:

इसाबेल्ला कुरैशी

अनीसा कुरैशी

पुरस्कार और सम्मान:

  • पद्मश्री (1988)
  • पद्म भूषण (2002)
  • पद्म विभूषण (2023)
  • संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987)
  • ग्रैमी पुरस्कार (2009)
  • ग्रैमी पुरुस्कार (1992 )
  • ग्रैमी पुरुस्कार (2024):  शंकर महादेवन, सेल्वगणेश विनायकराम, गणेश राजगोपालन, jakir husain द्वारा मिलकर बनाये गए बेंड शक्ति को 2024 का ग्रेमी अवार्ड मिला है |
  • कई अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

जीवन के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • 7 साल की उम्र में पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी
  • 12 साल की उम्र में पहली बार विदेश यात्रा
  • दुनिया भर के 50 से अधिक देशों में प्रस्तुति दी है
  • कई फिल्मों में कर चुके है तबला वादन
  • ‘The Dhol Foundation’ नामक एक गैर-लाभकारी संगठन की स्थापना की , जो युवा संगीतकारों को प्रशिक्षण प्रदान करता है 
  • 1973 में उनका पहला एलबम ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’ आया था 
  • पहले भारतीय जिन्हें ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए पूर्व राष्ट्रपति वाराक ओबामा ने उन्हें white house में आमंत्रित किया था | 

Conclusion

  • संगीत की दुनिया, विशेषकर तबला, में jakir husain का योगदान अतुलनीय है। उनके अभिनव दृष्टिकोण, तकनीकी प्रतिभा और विभिन्न शैलियों के सहयोग ने वैश्विक मंच पर तबले की स्थिति को ऊंचा किया है। चाहे आप एक अनुभवी उत्साही हों या भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में नए हों, जाकिर हुसैन की लयबद्ध दुनिया की खोज एक ऐसी यात्रा है जो समृद्ध और प्रेरणादायक दोनों होने का वादा करती है।

FAQ

  • Q1: jakir husain कौन हैं?
     
    जाकिर हुसैन भारत के विश्व प्रसिद्ध तबला वादक हैं। 3 फरवरी, 1951 को मुंबई में जन्मे, वह एक समृद्ध संगीत विरासत वाले परिवार से आते हैं। उनके पिता, उस्ताद अल्लारखा, एक प्रसिद्ध तबला वादक थे, और जाकिर हुसैन ने इस संगीत विरासत को बड़ी विशिष्टता के साथ आगे बढ़ाया है।
     
    Q2: जाकिर हुसैन ने तबला बजाना कब शुरू किया?
     
    जाकिर हुसैन ने अपने पिता उस्ताद अल्लारखा के मार्गदर्शन में बहुत कम उम्र में तबला सीखना शुरू कर दिया था। उनकी जन्मजात प्रतिभा और कला के प्रति समर्पण जल्द ही स्पष्ट हो गया और उन्होंने सात साल की उम्र में ही मंच पर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।
     
    Q3: jakir husain के तबला वादन को क्या विशिष्ट बनाता है?
     
    जाकिर हुसैन के तबला वादन की विशेषता इसकी अद्वितीय सटीकता, गति और अभिव्यक्ति है। उन्होंने न केवल पारंपरिक तबला रचनाओं में महारत हासिल की है, बल्कि दुनिया भर के विभिन्न शैलियों के संगीतकारों के साथ सहयोग करके वाद्ययंत्र की सीमाओं को भी आगे बढ़ाया है। आधुनिक संगीत शैलियों के साथ शास्त्रीय तबला तकनीकों को सहजता से मिश्रित करने की उनकी क्षमता उन्हें एक बहुमुखी और अभिनव कलाकार के रूप में अलग करती है।
     
    Q4: जाकिर हुसैन के कुछ उल्लेखनीय सहयोग क्या हैं?
     
    जाकिर हुसैन ने शास्त्रीय, जैज़, फ़्यूज़न और विश्व संगीत सहित विभिन्न शैलियों के संगीतकारों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ सहयोग किया है। उनके कुछ उल्लेखनीय सहयोगों में रविशंकर, ज़ाकिर हुसैन, जॉन मैकलॉघलिन, बेला फ्लेक और कई अन्य लोगों के साथ प्रदर्शन शामिल हैं। इन सहयोगों ने न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षितिज का विस्तार किया है, बल्कि एक बहुमुखी वाद्ययंत्र के रूप में तबले की वैश्विक सराहना में भी योगदान दिया है।
     
    Q5: क्या जाकिर हुसैन को संगीत में उनके योगदान के लिए कोई पुरस्कार मिला है?
     
    हाँ, जाकिर हुसैन को संगीत की दुनिया में उनके असाधारण योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। उन्हें 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं।
     
    प्रश्न 6: jakir husain का शिक्षण के प्रति दृष्टिकोण क्या है?
     
    अपने प्रदर्शन के अलावा ,‘The Dhol Foundation’ नामक एक गैर-लाभकारी संगठन[NGO] की स्थापना की जो युवा प्रतिभाओं को पढ़ाने और उनका पोषण करने के प्रति समर्पण के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने महत्वाकांक्षी तबला वादकों के साथ अपने ज्ञान और विशेषज्ञता को साझा करते हुए विश्व स्तर पर कार्यशालाएं और मास्टरक्लास आयोजित की हैं। तबला वादन की समृद्ध परंपरा को संरक्षित करने और भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता एक शिक्षक के रूप में उनकी भूमिका से स्पष्ट होती है।

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