जननायक के नाम से प्रसिद्ध karpoori thakur , सामाजिक न्याय के पुरोधा और बिहार के पूर्व मुख्य-मंत्री थे,उनका जन्म भारत में ब्रिटिश शासन में समस्तीपुर के एक गाव पितौझिया में हुआ था जो आज कर्पूरीग्राम के नाम से जाना जाता है इनके पिता एक सीमांत किसान थे जो अपना पारिवारिक पेशा बाल काटने का काम करते थे |
भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी। साधारण शुरुआत में जन्मे, एक छोटे से गाँव से मुख्यमंत्री कार्यालय तक की उनकी यात्रा दृढ़ संकल्प, लचीलेपन और लोगों के कल्याण के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की कहानी है।
karpoori thakur की बायोग्राफी :-
परिचय
Table of Contents
karpoori thakur की जीवन कहानी सिर्फ एक जीवनी नहीं है बल्कि बिहार की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक गतिशीलता का प्रतिबिंब है। सामाजिक सक्रियता में उनके शुरुआती प्रयासों से लेकर मुख्यमंत्री के रूप में राज्य को आगे बढ़ाने तक, ठाकुर का जीवन एक मनोरम कथा है जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है।
karpoori thakur के नेतृत्व में बिहार के विकास पथ ने उनकी नीतियों के सकारात्मक प्रभाव को प्रदर्शित किया। आर्थिक विकास, सामाजिक सुधार और बेहतर बुनियादी ढांचे ने राज्य के लिए प्रगति के युग को चिह्नित किया।
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जन्म तिथि | 24 जनवरी 1924 |
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जन्म स्थान | समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया |
पारिवारिक पृष्ठभूमि | एक साधारण परिवार में जन्मे |
शिक्षा | 1940 में मैट्रिक |
राजनीतिक प्रवेश | 1977 में राजनीतिक सफर की शुरुआत की |
जाति | नाई-ठाकुर |
चुनावी जीत | 1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठतम नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और राज्य के दो बार मुख्यमंत्री बने |
मुख्यमंत्री पद | 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। |
परिवार | बच्चे:रामनाथ ठाकुर दल: भारतीय क्रांति दल माता-पिता: राम दुलारी देवी ,गोकुल ठाकुर भाई: रामसौगत ठाकुर |
कृषि नीतियाँ | 1971 में मालगुज़ारी टैक्स को हटाया |
राजनैतिक गुरु | जयप्रकाश नारायण,राममनोहर लोहिया |
अन्य नाम | जननायक |
मान्यता एवं पुरस्कार | 26 जनवरी, 2024 को उन्हें मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित |
बिहार पर असर | बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उसे प्रगति-पथ पर लाने और विकास को गति देने में उनके अपूर्व योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा। |
जनता की राय | उन्होंने दलित और पिछड़ों को समाज कि मुख्य धारा में लाने के लिए अथक प्रयास किये और वह जन नायक कहलाये | |
उनका प्रसिद्ध नारा- | सो में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥ |
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
एक देहाती गाँव में जन्मे ठाकुर का पालन-पोषण सादगी से भरा हुआ था। उनके परिवार के मामूली साधनों ने उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाने में बाधा नहीं डाली। 1940 में मैट्रिक की परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी मे पास की और 1942 के असह्गोग आन्दोलन से जुड़ गए | सामाजिक मुद्दों के शुरुआती संपर्क ने बदलाव के प्रति उनके जुनून को बढ़ाया, जिससे कॉलेज के दिनों में छात्र आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी हुई।
राजनीति में प्रवेश
karpoori thakur का राजनीति में प्रवेश उनकी सामाजिक सक्रियता से स्वाभाविक प्रगति थी। आम आदमी की चिंताओं को दूर करने की इच्छा से प्रेरित होकर, उन्होंने अधिक न्यायसंगत समाज की दृष्टि से राजनीति की जटिल दुनिया में कदम रखना शुरू किया।
1952 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते,1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री बनकर बिहार में अंग्रेजी की अनिवार्यता को ख़त्म किया ,1970 में शिक्षा मंत्री के पद पर रहते हुए 8वी तक की शिक्षा मुफ़्त कर दी,CM बनते ही किसानों कों बड़ी राहत भरी सौगात देते हुए मालगुज़ारी टैक्स को समाप्त कर दिया तथा गरीबों और पिछड़ो को नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था भी की |
सामाजिक आंदोलनों में भूमिका
हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों की वकालत करने वाले प्रमुख सामाजिक आंदोलनों में उनकी भागीदारी ने सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। ठाकुर उन लोगों के लिए आशा का प्रतीक बन गए जो खुद को उपेक्षित महसूस करते थे, एक ऐसे नेता जो वास्तव में लोगों की नब्ज को समझते थे। सामाजिक आंदोलनों में दलित व पिछड़ों के परोकार होने के कारण “जननायक ” कहा गया |
जनता की राय
आज भी कर्पूरी ठाकुर पर जनता की राय सकारात्मक बनी हुई है. उनकी विरासत कायम है, लोग उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद करते हैं जिन्होंने जनता की जरूरतों को प्राथमिकता दी और उनके कल्याण के लिए अथक प्रयास किया। पिछड़े और दलितों के नेता होने और उनकी दूरदर्शी कल्याणकारी लोकप्रियता के कारण उन्हें जननायक कहा जाता है |
ठाकुर की बुद्धिमत्ता उनके उद्धरणों और कथनों में समाहित है। शासन पर व्यावहारिक टिप्पणियों से लेकर जीवन पर चिंतन तक, उनके शब्द जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रेरित और प्रभावित करते रहते हैं।
रोचक तथ्य
कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे
बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे |
जयप्रकाश नारायण,राममनोहर लोहिया उनके राजनैतिक गुरु थे
मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने मुंगेरी लाल आयोग के तहत् पिछड़ों को 12%आरक्षण दिया
1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठतम नेता सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और 2 बार CM बने
कर्पूरी ठाकुर का निधन 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था।
कर्पूरी ठाकुर के पिता गोकुल ठाकुर पारंपरिक पेशा ,नाई का काम करते थे
उनका सबसे विवादित भाषण था-“हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा” । इस भाषण के कारण उन्हें दण्ड भी झेलनी पड़ी थी।
सबसे प्रसिद्ध नारा –सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है
मरणोपरान्त भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रतन से सम्मानित किया गया |
निष्कर्ष
कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे और संघर्ष करते रहे। उनका सादा जीवन, सरल स्वभाव, स्पष्ट विचार और अदम्य इच्छाशक्ति बरबस ही लोगों को प्रभावित कर लेती थी और लोग उनके विराट व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित हो जाते थे। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उसे प्रगति-पथ पर लाने और विकास को गति देने में उनके अपूर्व योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।।
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FAQ
1-karpoori thakur किस जाति के किस जाति के थे ?
-नाई
2-karpoori thakur को आज जनता कैसे याद करती है?
-karpoori thakur को सकारात्मक रूप से याद किया जाता है, जनता जननायक के रूप में याद करती है
3-कर्पूरी ठाकुर को कोन सा अवार्ड मिला?
–मरणोपरांत भारत रतन
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